मैं गंगा, सुन लो मेरी पुकार

The Ganga

Author :Priti Singh | Date :13 Apr 2016

मैं गंगा हूँ। मैं वो हूँ जिसके प्रवाह को संतुलित करने के लिए खुद भगवान् शिव को अपनी जटाओं को खोलना पड़ा, मैं वो हूँ जिसे पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भागीरथ को न जाने कितने सालों तक तपस्या करनी पड़ी। मैं वो गंगा हूँ जिसे इतिहास महाराज शांतनु की पत्नी और महावीर भीष्म की मां के रुप में जानता है।

मेरा उद्गम हिमालय पर्वत की दक्षिण श्रेणियों से हुआ है। प्रवाह के चरण में मुझे अलकनंदा और भागीरथी दो नदियों के रुप में जाना जाता है। भागीरथी और अलकनंदा देव प्रयाग में संगम करती है और यहीं से मैं गंगा के स्वतंत्र अस्तित्व के रुप में पहचानी जाती हूँ।

मैंने न जाने कितनी संस्कृतियों और सभ्यताओं को अपने किनारे फलते-फूलते देखा है। पृथ्वी पर जब से मैं आई हूँ कितने लोगों के पापों को धोया है। मेरे जल से न जाने कितनी धरती सींची गई है, कितने खेतों की प्यास बुझी है। मैं देश की अर्थव्यवस्था में मेरुदंड के रुप में सहयोग करती रही हूँ। मैंने सिर्फ दिया ही दिया है। बदले में कभी कुछ नहीं मांगा। एक मां के रुप में मैंने हरेक प्राणी, हरेक जीव पर अपनी ममता खुल कर लुटाई है। लेकिन, आज मैं घायल हूँ। मेरे शरीर पर अनेक घाव हैं और ये घाव मनुष्यों ने मुझे दिए हैं। मेरी आत्मा कराह रही है, लोगों को मदद के लिए पुकार रही है। लेकिन किसी को भी मेरी आवाज नहीं सुनाई पड़ रही। सुनकर अनसुना कर देना इंसानों की फितरत है।

देश भर में लाखों टन गंदगी हर रोज मुझमें बहाई जा रही है। सीवरेज के गंदा पानी, मल-मूत्र से मुझ गंगा को हर दिन प्रदूषित किया जा रहा है। मेरे गर्भ में पलने वाले प्राणी इस प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं। मेरे जल में ई-कोली नामक विषैले पदार्थ की मात्रा बढ़ती जा रही है। इससे लोग अनेक रोगों के शिकार हो रहे हैं। फिर भी उनकी आंखें नहीं खुल रहीं।

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। हालात ऐसे ही रहे तो कुछ सालों में मेरी नदी में जल मिलना भी मुश्किल हो जायेगा। बांधों के द्वारा जगह-जगह पर मुझे बांधने का असफल प्रयास किया जाता रहा है। इस बंधन से मेरा जी उकता रहा है। मेरा धैर्य खो रहा है और मैं सब कुछ तोड़ देने को मचल रही हूँ।

मुझे बचाने के नाम पर आज तक कई प्रपंच रचे गये हैं। 1985 में गठित गंगा अथॉरिटी ने सफाई के नाम पर 3000 करोड़ रुपये खर्च कर दिए। लेकिन आज भी मेरा जल प्रदूषित है और ये मात्रा हर दिन बढ़ती जा रही है।

और अब नई सरकार ने नमामि गंगे मिशन की शुरुआत की है। इसके लिए बजट में 2,037 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस मिशन से कुछ उम्मीदें तो जगी हैं। लेकिन सरकार और उनके अधिकारियों की मेरे प्रति लापरवाही और आम आदमी की उपेक्षा ने मुझे अंदर तक तोड़ दिया है। मेरा दिल किसी इंसान पर भरोसा करने से कतराता है। हर ओर से मुझे अब तक निराशा ही मिली है। मेरी हर पुकार को अनदेखा किया गया है। ऐसे में सहज विश्वास करना बहुत ही मुश्किल है।

क्या वर्तमान में ऐसा कोई भागीरथ नहीं जो मेरी आवाज  सुने और मुझे ताड़ दे ? क्या अब ऐसी कोई संतान नहीं जो मेरी पीड़ा को महसूस कर मेरे घावों पर मरहम-पट्टी करे ? क्या कोई है ? 

 

बोल बिहार के लिए प्रीति सिंह