वोटों के गुणा-भाग में तब भी ‘दलित’ थे, अब भी ‘दलित’ हैं अंबेडकर

Baba Sahab Ambedkar

Author :Priti Singh | Date :15 Apr 2016

अंबेडकर की महानता और प्रासंगिकता समय और स्थान की सीमा से परे है पर अंबेडकर के नाम का जैसा शोर अब है वो पहले कभी नहीं रहा। अपने समय में अराजक और रैडिकल तक कहे गए अंबेडकर आज अचानक सबके लिए जरूरी (और कदाचित् सबकी मजबूरी भी) हो गए हैं। भारत का संविधान अंबेडकर का एक बड़ा, चाहे तो सबसे बड़ा कह लें, अवदान है लेकिन उनकी दृष्टि और व्यापकता केवल संविधान में सिमटकर रह जाने वाली नहीं थी। ये अंबेडकर ही थे जिन्होंने कहा था कि यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊँगा। आज अंबेडकर को महान बताकर अपने पाले में करने की होड़ तो लगी है लेकिन उनके बनाए जिस संविधान की आत्मा कराह रही है, उसकी सुध लेने की ना तो संवेदना है किसी में, ना समझ और ना ही संस्कार।

अंबेडकर का जितना नाम आज बहुजन समाज पार्टी की मायावती, लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के रामदास अठावले लेते हैं उतना ही कांग्रेस, वामदल, आम आदमी पार्टी और यहाँ तक कि भाजपा और आरएसएस भी। अंबेडकर मानते थे कि हिन्दू धर्म में विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने हिन्दू धर्म को पिंजरा बताते हुए बड़ी सार्वजनिक सभा करके बौद्ध धर्म अपनाया था और 22 संकल्प लिए थे जिनमें एक ये था कि मैं किसी देवी, देवता या अवतार में विश्वास नहीं करूँगा। अब ये समय की करवट ही कही जाएगी कि आज एक तरफ राम तो दूसरी तरफ अंबेडकर को साधने की कोशिश हो रही है। यहाँ प्रसंगवश ये बता देना भी जरूरी है कि अपनी आस्था के लिए वे जितने दृढ़प्रतिज्ञ थे, औरों की मान्यता के लिए उतने ही सहिष्णु भी। धर्म-परिवर्तन के प्रश्न पर उन्होंने स्पष्ट कहा था कि मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा जिससे हिन्दू धर्म की कोई हानि हो।

आज अंबेडकर के चित्र और प्रतिमाओं की भरमार है, भाषण और नारे उनके बिना पूरे नहीं होते, हर कोई अपने को उनका सच्चा और अच्छा वारिस बता रहा है। कारण स्पष्ट है कि भारत की कुल आबादी का एक चौथाई वोट अंबेडकर नाम से जुड़ा है। ये अलग बात है कि वोटों के इस गुणा-भाग में सारे दल और नेता उन वजहों से ही दूर हो गए जिन्होंने अंबेडकर को अंबेडकर बनाया था। परिणाम ये कि अंबेडकर तब भी दलित थे और अब भी दलित ही हैं..! उन्होंने बहुत पहले कह दिया था कि जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके लिए बेमानी है। आज अक्षरश: यही हो रहा है। दलितों के हित के नाम पर आज कई कानून और अधिनियम हैं, पर उनका दमन बदस्तूर जारी है।

आज लगभग 17 करोड़ दलित रोजी-रोटी की तलाश में गांव छोड़कर शहरों में आ चुके हैं। श्योराज सिंह बेचैन के शब्दों में ये करोड़ों दलित भारत के ऐसे शरणार्थी हैं, जिनके मानवाधिकारों की फिक्र किसी को नहीं है। कोई मंत्रालय, कोई विभाग इनकी समस्याओं को देखने-सुनने के लिए नहीं है। सरकार तमाम विस्थापितों के लिए विशेष सुविधाएं देती हैं। उनके लिए आवास, शिक्षा, रोजगार के प्रबंध किए जाते हैं। लेकिन इन दलितों के बच्चे ना केवल शिक्षा से वंचित हैं बल्कि बाल श्रम कानून के बावजूद अपना बचपन बेचने को मजबूर होते हैं। अस्पृश्यता के खिलाफ कानून है, पर अस्पृश्यता कम नहीं हो पा रही है। जहाँ आरक्षण बाध्यकारी नहीं है, उन क्षेत्रों-संस्थाओं में दलित प्रतिनिधित्व हजार में एक भी नहीं है। दलित उत्पीड़न अधिनियम बना हुआ है लेकिन दलितों को बांधकर पीटने, दलित महिलाओं को नंगा कर घुमाने या उनके गैंगरेप की घटनाएं आज भी आम हैं।

सबका साथ, सबका विकास सुनकर सचमुच बड़ा अच्छा लगता है लेकिन इस हकीकत का क्या किया जाय कि पाँच से पन्द्रह साल के करोड़ों दलित बच्चे स्कूल का मुँह नहीं देख पा रहे। वे सामाजिक रूप से पूरी तरह पराश्रित हैं और देश के विकास में हाथ बंटाने लायक नहीं बन रहे। और जो शिक्षित हैं, उनके पास आत्मनिर्भर बनने लायक या यूँ कहें कि डिजिटल इंडिया में रहने लायक क्वालिटी नॉलेज नहीं है।

आज प्रधानमंत्री मोदी ने अंबेडकर की 125वीं जयंती पर उनके जन्म-स्थान महू (मध्य प्रदेश) जाकर कहा कि एक ऐसा व्यक्ति जिसकी माँ बचपन में बर्तन साफ करती हो उसका बेटा प्रधानमंत्री बन जाए तो इसका श्रेय बाबा साहब को जाता है और आज ही के दिन उन्होंने ग्राम उदय से भारत उदय आन्दोलन की शुरुआत भी की पर सच ये है कि ये उदय पूर्णोदय तब तक नहीं होगा जब तक करोड़ों दलित बच्चे स्कूल जाने की उम्र में मजदूरी करेंगे, जब तक उनके पिता सिर पर मैला ढोएंगे और फिर बांधकर पीटे भी जाएंगे और जब तक उनकी माँओं का गैंगरैप कर उन्हें नंगा घुमाया जाता रहेगा..!

बोल बिहार के लिए डॉ. अमरदीप