‘द जंगल बुक’: एक घंटे छियालीस मिनट का अद्भुत रोमांच और साथ बैठी तीन पीढ़ियां

The Jungle Book

Author :Dr. Amardeep | Date :12 Apr 2016

एक बार फिर जंगल-जंगल हवा चली है और ऐसी चली है कि उसके आगोश में समा जाने को हमारी बस्तियां की बस्तियां दौड़ पड़ी हैं। ये बस्तियां अब भले ही सीमेंट की अट्टालिकाओं से पटी पड़ी हों लेकिन जंगल की उस हवा से फूल अब भी खिलते हैं और वो भी चड्डी पहनकर। जी हाँ, रुडयार्ड किपलिंग की कालजयी कृति द जंगल बुक एक बार फिर हम सबके सामने है - पहले से अधिक भव्य और विस्तृत पटल पर, आधुनिक तकनीक से और भी दर्शनीय होकर।

नब्बे के दशक में दूरदर्शन पर जंगल से मानवीय बस्ती तक मोगली की रोमांचक यात्रा की दीवानी पीढ़ी एक बार फिर उसी रोमांच से गुजरेगी, पर इस बार माता-पिता की भूमिका में, अपने बच्चों के संग। निर्देशक जॉन फेवरियू का एक साथ दो पीढ़ियों को उपहार है – द जंगल बुक। एक घंटे छियालीस मिनट की ये फिल्म रिलीज के कुछ दिनों के भीतर अगर कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है तो उसका मूल कारण भी यही है कि एक साथ दो-दो पीढ़ियां जुड़ती हैं इससे। और अगर 49 साल पहले यानि 1967 में आई द जंगल बुक को जोड़ दें तो पूरी तीन पीढ़ियां।

यह कहानी मोगली की है जो जन्म के बाद जंगल पहुँच जाता है और वहाँ भेड़ियों के झुंड के साथ पलता है। बघीरा और रक्षा उसके रक्षक हैं। जंगल के सभी जानवर उससे प्यार करते हैं, सिवाय शेरखान के। शेरखान मनुष्य के बच्चे को जंगल के लिए खतरा मानता है और उसे मार देना चाहता है। देखा जाय तो अपने आप में बहुत बड़ा संदेश छिपा है इसमें। बहरहाल, कई रोमांचक मोड़ों के साथ कहानी आगे बढ़ती जाती है और मोगली के माध्यम से हम जीवन के संघर्ष से रूबरू होते हैं। फिल्म की कहानी से लोग परिचित हैं इसलिए निर्देशक ने फिल्म में पूरा जोर क्या होगा के बजाय कैसे होगा पर दिया है। मोगली के किरदार में नील सेठी ने जैसे जान डाल दी है।

रुडयार्ड किपलिंग का जन्म भारत में हुआ था और बहुत संभव है कि भारत के जंगलों से प्रेरित होकर उन्हें मोगली, बघीरा जैसे पात्र सूझे हों। इस कारण भी भारत के दर्शकों के लिए अलग मायने रखती है ये फिल्म। अमेरिका से पहले इसे भारत में रिलीज करना अकारण हरगिज नहीं है। बहरहाल, अंग्रेजी संस्करण की तरह इसका हिन्दी संस्करण भी नामचीन कलाकारों की आवाज़ से सजा है। इसके हिन्दी संस्करण में इरफान खान, नाना पाटेकर, ओम पुरी, प्रियंका चोपड़ा और शेफाली शाह ने किरदारों को अपनी आवाज़ दी है।

तकनीकी स्तर पर अद्भुत है ये फिल्म। कई ऐसे शॉट्स हैं जो आपको दांतो तले उंगली दबाने पर मजबूर कर देंगे। बैकग्राउंड म्यूजिक, सिनेमाटोग्राफी, स्पेशल इफेक्ट्स, रंगों का संयोजन – सब परफेक्शन के साथ। टू-डी और थ्री-डी का उपयोग एकदम जरूरत के मुताबिक। मोगली के अलावे सारे पात्र एनिमेटेड हैं पर क्या मजाल की नकलीपन का आभास भी हो आपको। फिल्म का रियलिस्टिक लुक और भी विश्वसनीय बना देता है इसे। और सबसे बड़ी बात, जैसा कि आमतौर पर हॉलीवुड फिल्मों में देखा जाता है, कहीं भी तकनीक फिल्म की कहानी और इमोशन पर हावी नहीं होती। इसके लिए जॉन फेवरियू और उनकी पूरी टीम को जितनी बधाई दी जाए, कम होगी। आयरनमैन, आयरनमैन-2 और शेफ जैसी फिल्में दे चुके फेवरियू ने बता दिया कि उनके तरकश में संभावनाओं के कई तीर बाकी हैं अभी।

बोल बिहार के लिए डॉ. अमरदीप